पुनरुत्थान काल/ टैगोर स्कूल/ ठाकुर शैली
समय:– 1895 से 1920
जिस समय भारतीय कला अपने अस्तित्व को छोड़ने की कगार पर थी तभी ई वी हैवल 1884 में मद्रास कला विद्यालय के प्राचार्य हुए।
इन्होंने भारतीय कला परंपरा अजंता, मुगल, राजपूत आदि भारतीय कलाओं का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला कि भारतीय कला आत्मा के निकट है तथा यूरोपीय कला भौतिकवादी है।
अतः भारतीयों को अजंता, मुगल, राजपूत कलाओं को आदर्श मानकर चित्रण करना चाहिए उन्होंने विश्व भर का ध्यान भारतीयता की ओर आकर्षित किया।
1896 मैं कोलकाता कला विद्यालय के प्राचार्य बने जहां इन्हें अवनींद्र नाथ का सहयोग मिला, इन दोनों के सहयोग से ही भारतीय कला में एक नई कला धारा का जन्म हुआ जिसे बंगाल शैली कहा गया।
बंगाल स्कूल राजनैतिक सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में यूरोपीय प्रभाव के विरुद्ध एक आंदोलन था, जिसका उद्देश्य भारतीय कला के प्रति आस्था जागृत करना था।
बंगाल शैली का नारा :– “परंपरागत भारतीयता की और पुनः चलो”
बंगाल शैली के प्रेरणा स्रोत अजंता मुग़ल व राजपूत शैलियां हैं।
विषय– पौराणिक कथाएं, जनजीवन, साहित्यिक व धार्मिक कथाएं।
बंगाल शैली में ग्रहण तत्व:–
- रेखात्मक सौंदर्य – अजंता से,
- सौम्य रंग योजना –मुगल से,
- यथार्थ अंकन –यूरोपीय पाश्चात्य कला से,
- आलेखन –चीनी कला से,
- वाश पद्धति – जापान से, ग्रहण की
बंगाल शैली की कमियां:–
पतली बाहें, लंबी उंगलियां , अध खुली आंखें, धुंधले रंग, कोरी भावुकता, दुर्बल रेखांकन इत्यादि कमियां थी।
- आधुनिक भारतीय चित्रकला के पितामह–रवींद्रनाथ टैगोर
- आधुनिक भारतीय चित्रकला के पिता–अवनींद्र नाथ टैगोर
- आधुनिक भारतीय चित्रकला में नवीन जागृति के पिता – इवी हैवल
- भारतीय चित्रकला में नवीन जागृति के पिता–अवनींद्र नाथ टैगोर