रामकिंकर बैज / Ramkinkar Baij
जन्म –1906, पश्चिम बंगाल बांकुरा के जोगीवाला में ।
मृत्यु– 1980
शिक्षा– शांतिनिकेतन नंदलाल बोस से 1925
शिक्षक– शांतिनिकेतन के शिल्प विभाग के अध्यक्ष
कार्य –चित्रकार मूर्तिकार
माध्यम –जल रंग में चित्र। सीमेंट, कंक्रीट, प्लास्टर, पत्थर व कांस्य में में मूर्ति।
- प्रारंभ में लघु चित्र बनाए बाद में आयल कलर में भी कार्य किया।
- इनका जल रंग का कार्य विनोद बिहारी मुखर्जी से मिलता जुलता है।
- इनके चित्रों में प्रभाववादियों के समान प्रकाश,पाल सेजान की अंतराल व्यवस्था, घनवादियों का ताल विभाजन तथा पूर्वी देशों की लिपि की जीवंतता का समन्वय मिलता है।
- भारत में अभिवंजनावाद की शुरुआत रामकिंकर बैज की मूर्तियों से मानी जाती।
- उनके जीवन पर आधारित फिल्म "रामकिंकर बैज" शीर्षक से ऋत्विक घटक ने 1975 में बनाई
- इन्हे आधुनिक भारतीय मूर्तिकला का जनक माना जाता है
- उनके जीवन पर आधारित एक उपन्यास "देखी नाय फिरे" जिसका अर्थ है मुड़कर नहीं देखो बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार समरेश बसु ने लिखा।
- 1942 में प्रथम एकल प्रदर्शनी।
- इनके शिल्पा सदैव खुले में बने हैं।
- 1970 –पद्म भूषण
- 1976 –ललित कला अकादमी के फेलो निर्वाचित।
- बिरला अकैडमी आफ आर्ट एंड कल्चर द्वारा जीनियस ऑफ रामकिंकर बैज नामक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
रामकिंकर बैज के चित्र
अनाज की ओसाई
मेघाछादित संध्या
खेतों में हल जोतते हुए
शीतकालीन मैदान
मील पहुंचने की पुकार/ call of the meal
पहाड़ियों पर काम चलाऊ प्रबंध
घर की औरत
विद्यासागर
निर्माण कृष्ण जन्म
रेपर
सीता बनवास
रामकिंकर बैज के मूर्ति शिल्प
संथाल परिवार– सीमेंट कंकरीट, 1929 ,शांतिनिकेतन (427 सेंटीमीटर ऊंचाई)
यक्षिणी– पत्थर, रिजर्व बैंक बैंक दिल्ली (24 फीट ऊंचाई)
हार्वेस्टर
पिकनिक डे
सुजाता
दोपहर की विश्रांति में श्रमिक
घर की ओर लौटते हुए
कन्या और कुत्ता
रविंद्र नाथ टैगोर –कांस्य , (इस मूर्ति को देखकर रविंद्र नाथ ने कहा रामकिंकर बैज आगे बढ़ो पीछे मुड़कर मत देखो )
कच्चे देवयानी
बाजार से लौटते हुए