सोमरस
सोमरस, हिंदू पौराणिक कथाओं और पौराणिक साहित्य में एक महत्वपूर्ण पेय पदार्थ है। इसे देवताओं का प्रिय पेय पदार्थ माना जाता है और इसे प्राप्त करने के लिए उन्हें तपस्या और पूजा करनी पड़ती है। यह पदार्थ उच्चतम देवता शिव और पशुपति का प्रिय रस माना जाता है।
क्या होता है सोमरस
सोमरस की प्राचीनता पौराणिक काल से जुड़ी है, जब देवताओं और असुरों के मध्य हो रहे अमृत मंथन के समय इसका उद्भव हुआ था। मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान, देवता और असुरों ने समुद्र में एक विशेष पर्वत उत्पन्न किया, जिसे मंदराचल कहा जाता है। इस पर्वत के अंदर एक विशेष वृक्ष था जिसका नाम सोम है। इस वृक्ष से निकलने वाली रसायनिक तरंगों को सोमरस कहा गया और इसे देवताओं को अर्पित किया गया।
सोमरस बनाने की विधि
सोमरस की प्राप्ति के लिए, वैदिक काल में विशेष रूप से सोम पौधे का उपयोग किया जाता था। सोम पौधे को विशेष ध्यान और परिपूर्णता के साथ उगाया जाता था। इसके पत्ते और स्तंभ को काटा जाता था और उन्हें इष्टिका (याग्नेय दृश्यों के लिए उपयोग होने वाली छिद्रित कलश) में संग्रहित किया जाता था।
यज्ञ के दौरान, सोम पौधे के पत्तों को पीस लिया जाता था और उसका रस निकाला जाता था। इस रस को फिल्टर किया जाता था और फिर विशेष प्रक्रिया के माध्यम से उसे प्रशस्ति और पवित्र कर दिया जाता था। इस प्रक्रिया के बाद, सोमरस देवताओं को अर्पित किया जाता था और वे इसे दूध या दही के साथ पीते थे।
सोमरस की उपयोगिता व महत्व
वैदिक साहित्य में सोमरस का भी विशेष महत्व है। उसमें वर्णित है कि देवताओं की यज्ञों में सोमरस का प्रयोग होता था और यज्ञ के द्वारा मानव और देवताओं के बीच संबंध स्थापित किए जाते थे। यह सोमरस उत्पादन करने का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण था और उसे श्रद्धा और आदर से इस्तेमाल किया जाता था।
इस प्रकार, सोमरस हिंदू पौराणिक कथाओं और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पेय पदार्थ है जिसे देवताओं का प्रिय पेय माना जाता है। इसका स्वाद मधुर होता है और इसे पीने से शक्ति, ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति होती है।